आसमाँ Poetry (page 31)

इल्म की ज़रूरत

अहमक़ फफूँदवी

फ़लक पे चाँद नहीं कोई अब्र-पारा नहीं

अहमद ज़फ़र

ये वक़्त रौशनी का मुख़्तसर है

अहमद शनास

है वाहिमों का तमाशा यहाँ वहाँ देखो

अहमद शनास

वो मर गया सदा-ए-नौहा-गर में कितनी देर है

अहमद शहरयार

राज़-ए-दरून-ए-आस्तीं कश्मकश-ए-बयाँ में था

अहमद शहरयार

नए ज़मानों की चाप तो सर पे आ खड़ी थी

अहमद शहरयार

इक ख़्वाब है ये प्यास भी दरिया भी ख़्वाब है

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

एक उम्र होती है

अहमद राही

आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ के साथ

अहमद नदीम क़ासमी

पस-ए-आईना

अहमद नदीम क़ासमी

एक दरख़्वास्त

अहमद नदीम क़ासमी

लबों पे नर्म तबस्सुम रचा के धुल जाएँ

अहमद नदीम क़ासमी

जो लोग दुश्मन-ए-जाँ थे वही सहारे थे

अहमद नदीम क़ासमी

जब भी आँखों में तिरी रुख़्सत का मंज़र आ गया

अहमद नदीम क़ासमी

जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम

अहमद नदीम क़ासमी

हमेशा ज़ुल्म के मंज़र हमें दिखाए गए

अहमद नदीम क़ासमी

दिलों से आरज़ू-ए-उम्र-ए-जावेदाँ न गई

अहमद नदीम क़ासमी

पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है

अहमद मुश्ताक़

कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए

अहमद मुश्ताक़

धुएँ से आसमाँ का रंग मैला होता जाता है

अहमद मुश्ताक़

ज़मीं से उगती है या आसमाँ से आती है

अहमद मुश्ताक़

ये हम ग़ज़ल में जो हर्फ़-ओ-बयाँ बनाते हैं

अहमद मुश्ताक़

रुख़्सत-ए-शब का समाँ पहले कभी देखा न था

अहमद मुश्ताक़

पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है

अहमद मुश्ताक़

कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों पे निगाह थी

अहमद मुश्ताक़

बरस कर खुल गया अब्र-ए-ख़िज़ाँ आहिस्ता आहिस्ता

अहमद मुश्ताक़

बहुत रुक रुक के चलती है हवा ख़ाली मकानों में

अहमद मुश्ताक़

अब न बहल सकेगा दिल अब न दिए जलाइए

अहमद मुश्ताक़

अब न बहल सकेगा दिल अब न दिए जलाइए

अहमद मुश्ताक़

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