आयने Poetry (page 2)

महताब फ़ज़ा के आइने में

वसाफ़ बासित

तमाम उम्र-ए-रवाँ का माल हैरत है

तसनीम आबिदी

मोती नहीं हूँ रेत का ज़र्रा तो मैं भी हूँ

तैमूर हसन

मिरा बातिन मुझे हर पल नई दुनिया दिखाता है

तैमूर हसन

सुकून-ए-दिल में वो बन के जब इंतिशार उतरा तो मैं ने देखा

ताहिर फ़राज़

बस्तियों में होने को हादसे भी होते हैं

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

अब्र का माहताब का भी था

सय्यद मुनीर

जो हो सका नहीं दरपेश उसे बनाता हुआ

सय्यद काशिफ़ रज़ा

एक दिन मेरा आईना मुझ को

सुरेन्द्र शजर

आईना देखना

सूरज नारायण मेहर

जाने क्यूँ बातों से जलते हैं गिले करते हैं लोग

सुलतान रशक

मैं जुदाई का मुक़र्रर सिलसिला हो जाऊँगा

सुबोध लाल साक़ी

महीने के अख़ीर दिनों में

सिदरा सहर इमरान

हम हैं और शुग़्ल-ए-इश्क़-बाज़ी है

ज़ौक़

सफ़र से मुझ को बद-दिल कर रहा था

शारिक़ कैफ़ी

इंतिहा तक बात ले जाता हूँ मैं

शारिक़ कैफ़ी

एक मुद्दत हुई घर से निकले हुए

शारिक़ कैफ़ी

वो अक्स मुझ में जुनूँ-साज़ रक़्स करने लगा

शमशीर हैदर

जुनूब ओ मश्रिक ओ मग़रिब तिरे शुमाल तिरा

शमशीर हैदर

निगाह ओ दिल के तमाम रिश्ते फ़ज़ा-ए-आलम से कट गए हैं

शकील जाज़िब

फिर सुन रहा हूँ गुज़रे ज़माने की चाप को

शकेब जलाली

किस हक़ीक़त का इंकिशाफ़ किया

शहज़ाद नय्यर

जो कुछ भी मेरे पास थी दौलत निगल गई

शहज़ाद हुसैन साइल

सबब क्या है कभी समझी नहीं मैं

शाहिदा हसन

बस रूह सच है बाक़ी कहानी फ़रेब है

शाहिद ज़की

इक सब्ज़ रंग बाग़ दिखाया गया मुझे

शाहिद मीर

न क्यूँ कि अश्क-ए-मुसलसल हो रहनुमा दिल का

शाह नसीर

कभू न उस रुख़-ए-रौशन पे छाइयाँ देखीं

शाह नसीर

हरम को शैख़ मत जा है बुत-ए-दिल-ख़्वाह सूरत में

शाह नसीर

ख़ुद अपनी आँच से इक शख़्स जल गया मुझ में

शफ़ी ज़ामिन

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