आयने Poetry (page 3)

अब ज़मीन-ओ-आसमाँ के सब किनारों से अलग

शादाब उल्फ़त

ये सनम भी घटोर कितने हैं

शाद लखनवी

मुंतशिर जब ज़ेहन में लफ़्ज़ों का शीराज़ा हुआ

सीन शीन आलम

दिल पे जब तेरा तसव्वुर छा गया

सीमाब सुल्तानपुरी

कहाँ से ढूँढ के लाऊँ पुराने ख़्वाब आँखों में

सावन शुक्ला

सवाब की दुआओं ने गुनाह कर दिया मुझे

सरवत ज़ेहरा

मुंहदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते

सरवत हुसैन

हवा ओ अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ

सरवत हुसैन

मौत की ख़ुशबू

साक़ी फ़ारुक़ी

कैसे कैसे रंग हैं तन्हाई की तस्वीर में

सलमान सिद्दीक़ी

यूँ भला तुम पर सजा कब आइने में देखना

सलमान सिद्दीक़ी

घर के दरवाज़े खुले हों चोर का खटका न हो

सलीम शाहिद

बुझ गए शो'ले धुआँ आँखों को पानी दे गया

सलीम शाहिद

पड़ा हुआ मैं किसी आइने के घर में हूँ

सलीम बेताब

चलो दुनिया से मिलना छोड़ देंगे

साजिद अमजद

आँखों को ख़्वाब-नाक बनाना पड़ा मुझे

साइम जी

जागा है कच्ची नींद से मत छेड़िए उसे

सैफ़ सहसराम

पत्थर को पूजते थे कि पत्थर पिघल पड़ा

सईद अहमद

यही नहीं कि फ़क़त तिरी जुस्तुजू भी मैं

सादिक़ नसीम

हर शख़्स को ऐसे देखता हूँ

सादिक़ नसीम

अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ

साबिर

ख़्वाहिशों ने दिल को तस्वीर-ए-तमन्ना कर दिया

सबा अकबराबादी

ये जमाल क्या ये जलाल क्या ये उरूज क्या ये ज़वाल क्या

सादुल्लाह शाह

मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद

रियाज़ ख़ैराबादी

मुसाफ़िरत के तहय्युर से कट के कब आए

रियाज़ मजीद

कोई रस्ता कोई रहरव कोई अपना नहीं मिलता

राशिद क़य्यूम अनसर

मआल

राज नारायण राज़

बूँदें पड़ी थीं छत पे कि सब लोग उठ गए

राज नारायण राज़

कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा

इरफ़ान सत्तार

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

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