आयने Poetry (page 5)

मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कहीं मोहब्बत के आसमाँ पर विसाल का चाँद ढल रहा है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में है मेहराब पर सितारा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

रंगों की बारिशों से धुँदला गया है मंज़र

ग़ालिब इरफ़ान

अल्फ़ाज़-ए-बे-सदा का इम्कान आइने में

ग़ालिब इरफ़ान

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना

ग़ालिब

याद

फ़े सीन एजाज़

मैं ताइर-ए-वजूद या बर्ग-ए-ख़याल था

फ़ारूक़ मुज़्तर

परिंदे खेत में अब तक पड़ाव डाले हैं

फ़ारूक़ अंजुम

तराना-ए-रेख़्ता

फ़रहत एहसास

सब मिरा आब-ए-रवाँ किस के इशारों पे बहा जाता है

फ़रहत एहसास

हम अपने आप को अपने से कम भी करते रहते हैं

फ़रहत एहसास

है शोर साहिलों पर सैलाब आ रहा है

फ़रहत एहसास

अजीब तजरबा आँखों को होने वाला था

फ़रहत एहसास

इस लिए दौड़ते ही ऐसे हैं

फ़राज़ महमूद फ़ारिज़

चेहरे से कब अयाँ है मिरे इज़्तिरार भी

फख़्र अब्बास

एक नग़्मा करबला-ए-बैरुत के लिए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुझ को ये फ़िक्र कब है कि साया कहाँ गया

फ़ैसल अजमी

अब सराब के चश्मे मौजज़न नहीं होते

एज़ाज़ अफ़ज़ल

ज़ालिम से मुस्तफ़ा का अमल चाहते हैं लोग

एजाज़ रहमानी

पाया न कुछ ख़ला के सिवा अक्स-ए-हैरती

एजाज़ गुल

पेचाक-ए-उम्र अपने सँवार आइने के साथ

एजाज़ गुल

कल रात कुछ अजीब समाँ ग़म-कदे में था

एहसान दानिश

ज़माने ठीक है इन से बहुत हुए रौशन

दिनेश नायडू

ख़ुद में खिलते हुए मंज़र से नुमूदार हुआ

दिलावर अली आज़र

अजीब रंग अजब हाल में पड़े हुए हैं

दिलावर अली आज़र

पर्दा-दार हस्ती थी ज़ात के समुंदर में

दत्तात्रिया कैफ़ी

हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

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