भरोसा Poetry (page 1)

टीपू-सुल्तान

इज्तिबा रिज़वी

शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया

ख़ामोश ज़मज़मे हैं मिरा हर्फ़-ए-ज़ार चुप

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते

ज़ुहूर नज़र

हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते

ज़ुहूर नज़र

नज़र नज़र से मिलाओगे मारे जाओगे

ज़ुबैर क़ैसर

तिरी निगह से इसे भी गुमाँ हुआ कि मैं हूँ

ज़िया जालंधरी

क्या सरोकार अब किसी से मुझे

ज़िया जालंधरी

कुछ और पिला नशात की मय

ज़िया जालंधरी

पयाम

ज़े ख़े शीन

ज़िंदगी ख़ार-ज़ार में गुज़री

ज़रीना सानी

दस्त-ए-तलब दराज़ ज़ियादा न कर सके

ज़ैन रामिश

तू बेवफ़ा है तिरा ए'तिबार कौन करे

ज़ैग़म हमीदी

तू बेवफ़ा है तिरा ए'तिबार कौन करे

ज़ैग़म हमीदी

निगाह-ए-शौक़ को रुख़ पर निसार होने दो

ज़हीर अहमद ताज

दिल-ए-फ़सुर्दा को अब ताक़त-ए-क़रार नहीं

ज़ाहिदा ज़ैदी

है कोई इख़्तियार दुनिया पर

ज़फ़र इक़बाल

भले ही आँख मिरी सारी रात जागेगी

ज़फर इमाम

पानी को आग कह के मुकर जाना चाहिए

यूसुफ़ ज़फ़र

निगाह-ए-नाज़ का हासिल है ए'तिबार मुझे

यज़दानी जालंधरी

अपनी निगाह पर भी करूँ ए'तिबार क्या

यासमीन हमीद

इक बे-पनाह रात का तन्हा जवाब था

यासमीन हमीद

मैं घर से जाऊँ तो ताला लगा के जाती हूँ

यासमीन हबीब

ये कमरा और ये गर्द-ओ-ग़ुबार उस का है

यासमीन हबीब

जो तू नहीं तो मौसम-ए-मलाल भी न आएगा

याक़ूब यावर

हम अपनी पुश्त पर खुली बहार ले के चल दिए

याक़ूब यावर

हवा-ए-सुब्ह-ए-नुमू दुश्मन-ए-चमन कैसे

याक़ूब राही

था उस का जैसा अमल वो ही यार मैं भी करूँ

याक़ूब आरिफ़

'यास' इस चर्ख़-ए-ज़माना-साज़ का क्या ए'तिबार

यगाना चंगेज़ी

तो मैं भी ख़ुश हूँ कोई उस से जा के कह देना

वसी शाह

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