आइना Poetry (page 2)
आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर
यगाना चंगेज़ी
सज दिया हैरत-ए-उश्शाक़ ने इस बुत का मकाँ
वज़ीर अली सबा लखनवी
रहना तुम चाहे जहाँ ख़बरों में आते रहना
वामिक़ जौनपुरी
कोई अपने वास्ते महशर उठा कर ले गया
वलीउल्लाह वली
उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है
वलीउल्लाह मुहिब
शोरिश से चश्म-ए-तर की ज़ि-बस ग़र्क़-ए-आब हूँ
वलीउल्लाह मुहिब
दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ
वलीउल्लाह मुहिब
वक़्त बोसे के मिरा मुँह उस के लब से जूँ जुड़ा
वली उज़लत
मौत की जुस्तुजू
वहीद अख़्तर
उस एक शख़्स का कोई पता नहीं मिलता
विशाल खुल्लर
लम्हा लम्हा शोर सा बरपा हुआ अच्छा लगा
विशाल खुल्लर
दीवार-ओ-दर सा चाहिए दीवार-ओ-दर मुझे
विशाल खुल्लर
हवा के वार पे अब वार करने वाला है
विकास शर्मा राज़
रही है यूँ ही नदामत मुझे मुक़द्दर से
विजय शर्मा अर्श
हक़ीक़त से जो आश्ना हो गया
वफ़ा बराही
अश्क पर गुदाज़-दिल हाशिया चढ़ाता है
उरूज ज़ैदी बदायूनी
किसी से और तो क्या गुफ़्तुगू करें दिल की
उम्मीद फ़ाज़ली
आइने के रू-ब-रू इक आइना रखता हूँ मैं
तौसीफ ताबिश
फ़क़ीरों का चलन यूँ जिस्म के अंदर महकता है
ताैफ़ीक़ साग़र
ख़्वाब पहले ले गया फिर रत-जगा भी ले गया
तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी
वो हम से क्यूँ अलग था क्यूँ दुखी था
तसव्वुर ज़ैदी
अच्छे लगोगे और भी इतना किया करो
तारिक़ राशीद दरवेश
ये आरज़ू थी उसे आइना बनाते हम
तारिक़ क़मर
वो ख़ुद गया है उस का असर तो नहीं गया
तारिक़ नईम
मैं आ रहा था सितारों पे पाँव धरते हुए
तारिक़ नईम
दश्त में जो भी है जैसा मिरा देखा हुआ है
तनवीर सामानी
एक आवाज़
तख़्त सिंह
सुन फ़स्ल-ए-गुल ख़ुशी हो गुलशन में आइयाँ हैं
ताबाँ अब्दुल हई
अज़ीज़ाँ सितमगर न आया मिरे घर
ताबाँ अब्दुल हई
आरज़ू है मैं रखूँ तेरे क़दम पर गर जबीं
ताबाँ अब्दुल हई
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