आइना Poetry (page 4)

जब ध्यान में वो चाँद सा पैकर उतर गया

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

सफ़र गुमाँ है रास्ता ख़याल है

शुमाइला बहज़ाद

जाने किस किस की तवज्जोह का तमाशा देखा

शोहरत बुख़ारी

जब रक़ीबों का सितम याद आया

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

पुरखों से जो मिली है वो दौलत भी ले न जाए

शीन काफ़ निज़ाम

क़ुदरत है तुर्फ़ा-कार तुझे कुछ ख़बर भी है

शारिक़ ईरायानी

मिरे ए'तिमाद को ग़म मिला मिरी जब किसी पे नज़र गई

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

तेरी नज़र के सामने ये दिल नहीं रहा

शकील शम्सी

लदी है फूलों से फिर भी उदास लगती है

शकील शम्सी

वो दिल में रहते हैं दिल का निशाँ नहीं मा'लूम

शकील बदायुनी

मैं जानता हूँ ख़ुशामद-पसंद कितना है

शकील आज़मी

हुआ न ख़त्म अज़ाबों का सिलसिला अब तक

शकील आज़मी

मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख

शकेब जलाली

आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे

शकेब जलाली

झोंका हवा का अध-खुली खिड़की तक आ न जाए

शकेब अयाज़

कुछ भी हो तक़दीर का लिक्खा बदल

शाइस्ता सहर

मौत आती नहीं क़रीने की

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

मौत आती नहीं क़रीने की

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

दरीचा आइने पर खुल रहा है

शहनवाज़ ज़ैदी

मिले जो नाक़ा-ए-वहशत को सारबाँ कोई

शाहिदा हसन

हर्फ़-ए-कुन शह-ए-रग-ए-हू में गुम है

शाहिद कमाल

रूह को क़ैद किए जिस्म के हालों में रहे

शाहिद कबीर

हर आइने में बदन अपना बे-लिबास हुआ

शाहिद कबीर

जुनून-ए-शौक़ की राहों में जब अपने क़दम निकले

शाहिद भोपाली

अहल-ए-दुनिया के लिए ये माजरा है मुख़्तलिफ़

शाहीन बद्र

इक ग़लत-फ़हमी ने दिल का आइना धुँदला दिया

शहबाज़ नदीम ज़ियाई

बसान-ए-आइना हम ने तो चश्म वा कर ली

शाह नसीर

तलब में बोसे की क्या है हुज्जत सवाल दीगर जवाब दीगर

शाह नसीर

बचा था एक जो वो राब्ता भी टूट गया

शफ़ीक़ सलीमी

ये क्या कि मेरे यक़ीं में ज़रा गुमाँ भी है

शफ़क़ सुपुरी

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