आइना Poetry (page 5)

इतने चुप क्यूँ हो माजरा क्या है

शायर फतहपुरी

सुना हम को आते जो अंदर से बाहर

शाद लखनवी

जो बीच में आइना हो प्यारे इधर हमारे उधर तुम्हारे

शाद लखनवी

तमाम उम्र की आवारगी पे भारी है

शबनम रूमानी

संग-ए-चेहरा-नुमा तो मैं भी हूँ

शबनम रूमानी

दिल पे जब तेरा तसव्वुर छा गया

सीमाब सुल्तानपुरी

जल्वा-गाह-ए-दिल में मरते ही अँधेरा हो गया

सीमाब अकबराबादी

अब क्या बताऊँ मैं तिरे मिलने से क्या मिला

सीमाब अकबराबादी

पूछ मत कल आइने में क्या हुआ

सीमा शर्मा मेरठी

हर संग में शरार है तेरे ज़ुहूर का

मोहम्मद रफ़ी सौदा

बे-वज्ह नईं है आइना हर बार देखना

मोहम्मद रफ़ी सौदा

हमारे जिस्म ने जिस जिस्म को बुलाया है

सत्य नन्द जावा

पस-ए-आइना ख़द-ओ-ख़ाल में कोई और था

सत्तार सय्यद

बहुत मुसिर थे ख़ुदायान-ए-साबित-ओ-सय्यार

सरवत हुसैन

किताब-ए-सब्ज़ ओ दर-ए-दास्तान बंद किए

सरवत हुसैन

आँखें ज़मीन और फ़लक दस्तकार हैं

सरफ़राज़ आरिश

सब कुछ न कहीं सोग मनाने में चला जाए

साक़ी फ़ारुक़ी

क्या करें आँख अगर उस से सिवा चाहती है

समीना राजा

शाएरी झूट सही इश्क़ फ़साना ही सही

समीना राजा

दिल को उजड़े हुए बीते हैं ज़माने कितने

सलमान अंसारी

हम झुकाते भी कहाँ सर को क़ज़ा से पहले

सलमा शाहीन

सालिम यक़ीन-ए-अज़्मत-ए-सेहर-ए-ख़ुदा न तोड़

सलीम शुजाअ अंसारी

पेश-ए-इदराक मिरी फ़िक्र के शाने खुल जाएँ

सलीम शुजाअ अंसारी

जिस्म की सतह पे तूफ़ान किया जाएगा

सालिम सलीम

रहा वो शहर में जब तक बड़ा दबंग रहा

सलीम शहज़ाद

ये फ़ैसला भी मिरे दस्त-ए-बा-कमाल में था

सलीम शाहिद

हूँ मैं भी वही मेरा मुक़ाबिल भी वही है

सलीम शाहिद

अक्स हैरान है आइना कौन है

सलीम मुहीउद्दीन

बस इक रस्ता है इक आवाज़ और एक साया है

सलीम कौसर

सुकूत बढ़ने लगा है सदा ज़रूरी है

सलीम फ़ौज़

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