आइना Poetry (page 7)

मिरी शनाख़्त के हर नक़्श को मिटाता है

रशीदुज़्ज़फ़र

मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में

रशीद निसार

कोई तो है कि नए रास्ते दिखाए मुझे

रशीद निसार

जिस को आदत वस्ल की हो हिज्र से क्यूँकर बने

रशीद लखनवी

तन्हाइयों के दर्द से रिसता हुआ लहू

रशीद अफ़रोज़

तेरे आने का इंतिज़ार रहा

रसा चुग़ताई

मोहब्बत ख़ब्त है या वसवसा है

रसा चुग़ताई

तुझ से मैं मुझ से आश्ना तुम हो

रमेश कँवल

तुझे अच्छा बुरा जैसा लगा हूँ

राम नाथ असीर

सरसब्ज़ मौसमों का नशा भी मिरे लिए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

उठा ख़ुद जिस से जाता भी नहीं है

राजेन्द्र कलकल

ख़्वाब आँखों को हमारी जो दिखाए आइना

राजेन्द्र कलकल

हर इक साँस में कुछ दर्द दर्द लगता है

राज खेती

हर इक फ़न में यक़ीनन ताक़ है वो

राही फ़िदाई

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

इक़बाल साजिद

मिला तो हादिसा कुछ ऐसा दिल ख़राश हुआ

इक़बाल साजिद

समुंदर के किनारे इक समुंदर आदमियों का

इक़बाल हैदर

खोए गए तो आइने को मो'तबर किया

इक़बाल हैदर

जो हो सके तो कभी इतनी मेहरबानी कर

इक़बाल अासिफ़

आरज़ू है सूरज को आइना दिखाने की

इक़बाल अशहर

भीगी भीगी पलकों पर ये जो इक सितारा है

इक़बाल अशहर

मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंड

इंशा अल्लाह ख़ान

कुछ रोज़ अभी और है ये आइना-ख़ाना

इनाम नदीम

जिस रोज़ तिरे हिज्र से फ़ुर्सत में रहूँगा

इनाम नदीम

आरास्तगी बड़ी जिला है

इमदाद अली बहर

तुम्हारे जाते ही हर चश्म-ए-तर को देखते हैं

इमाम अाज़म

कफ़ील-ए-साअ'त-ए-सय्यार रक्खा होता है

इलियास बाबर आवान

हमारा आइना बे-कार हो गया तो फिर!

इलियास बाबर आवान

जिस्म-ओ-जाँ की बस्ती में सिलसिले नहीं मिलते

इफ़्फ़त ज़र्रीं

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