आइना Poetry (page 9)

जो ख़त है शिकस्ता है जो अक्स है टूटा है

हफ़ीज़ बनारसी

करो बातें हटाओ आइना बस बन चुके गेसू

हबीब मूसवी

हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है

हबीब मूसवी

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

आप जब चेहरा बदल कर आ गए

गोविन्द गुलशन

बढ़ा जब उस की तवज्जोह का सिलसिला कुछ और

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

समझते हैं जो अपने बाप की जागीर मिट्टी को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

क़र्या-ए-हैरत में दिल का मुस्तक़र इक ख़्वाब है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नहीं है इस नींद के नगर में अभी किसी को दिमाग़ मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरे नज्म-ए-ख़्वाब के रू-ब-रू कोई शय नहीं मिरे ढंग की

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुआ रौशन दम-ए-ख़ुर्शीद से फिर रंग पानी का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में रुका है जो इक हयूला सा यासमीं का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अगर ये रंगीनी-ए-जहाँ का वजूद है अक्स-ए-आसमाँ से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल अहल-ए-वफ़ा कहने लगे

ग़ुलाम हुसैन अयाज़

अभी आइना मुज़्महिल है

ग़ुफ़रान अमजद

अब तो ख़ुद से भी कुछ ऐसा है बशर का रिश्ता

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है

ग़ालिब

ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद

ग़ालिब

शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला

ग़ालिब

निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की

ग़ालिब

नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच

ग़ालिब

कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में

ग़ालिब

जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई

ग़ालिब

जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा

ग़ालिब

हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं

ग़ालिब

हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर

ग़ालिब

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़

ग़ालिब

गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है

ग़ालिब

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

ग़ालिब

दर-ख़ूर-ए-क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ

ग़ालिब

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