आइना Poetry (page 10)
दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
ग़ालिब
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
ग़ालिब
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
ग़ालिब
बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे
ग़ालिब
अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
ग़ालिब
यहाँ कौन इस के सिवा रह गया
गौहर होशियारपुरी
दिलों के आइने धुँदले पड़े हैं
फ़ुज़ैल जाफ़री
निगाह-ए-हुस्न की तासीर बन गया शायद
फ़ितरत अंसारी
तमाम अजनबी चेहरे सजे हैं चारों तरफ़
फ़िराक़ जलालपुरी
बड़ा ग़ुरूर है पल भर की नेक-नामी का
फ़िराक़ जलालपुरी
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
फ़िराक़ गोरखपुरी
तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था
फ़िराक़ गोरखपुरी
सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात
फ़िराक़ गोरखपुरी
तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने
फ़िगार उन्नावी
तूफ़ाँ से बच के दामन-ए-साहिल में रह गया
फ़िगार उन्नावी
सई-ए-ग़ैर-हासिल को मुद्दआ नहीं मिलता
फ़िगार उन्नावी
किसी अपने से होती है न बेगाने से होती है
फ़िगार उन्नावी
ये क्या बताएँ कि किस रहगुज़र की गर्द हुए
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
न दामनों में यहाँ ख़ाक-ए-रहगुज़र बाँधो
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
खुला न मुझ से तबीअत का था बहुत गहरा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
मैं अपने दिल की तरह आइना बना हुआ हूँ
फ़रताश सय्यद
अब के जुनूँ हुआ तो गरेबाँ को फाड़ कर
फ़र्रुख़ जाफ़री
मैं तो लम्हात की साज़िश का निशाना ठहरा
फ़ारूक़ शमीम
यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं
फ़ारूक़ मुज़्तर
सोच भी उस दिन को जब तू ने मुझे सोचा न था
फ़ारूक़ मुज़्तर
न पानियों का इज़्तिरार शहर में
फ़ारूक़ मुज़्तर
न दौलत की तलब थी और न दौलत चाहिए है
फ़रहत नदीम हुमायूँ
पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है
फ़रहत एहसास
जिस तरह पैदा हुए उस से जुदा पैदा करो
फ़रहत एहसास
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