करो बातें हटाओ आइना बस बन चुके गेसू
इन्हीं झगड़ों ही में उस दिन भी कितनी रात आई थी
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फ़रियाद भी मैं कर न सका बे-ख़बरी से
चल नहीं सकते वहाँ ज़ेहन-ए-रसा के जोड़-तोड़
शब-ए-फ़ुर्क़त है ठहरते नहीं शोले दिल में
बरहमन शैख़ को कर दे निगाह-ए-नाज़ उस बुत की
शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा
शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है
ख़ुदा करे कहीं मय-ख़ाने की तरफ़ न मुड़े
तालिब-ए-बोसा हूँ मैं क़ासिद वो हैं ख़्वाहान-ए-जान
बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा
मोहतसिब तू ने किया गर जाम-ए-सहबा पाश पाश
है आठ पहर तू जल्वा-नुमा तिमसाल-ए-नज़र है परतव-ए-रुख़