जो ले लेते हो यूँ हर एक का दिल बातों बातों में
बताओ सच ये चालाकी तुम्हें किस ने सिखाई थी
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Allama Iqbal
Parveen Shakir
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करो बातें हटाओ आइना बस बन चुके गेसू
ये साबित है कि मुतलक़ का तअय्युन हो नहीं सकता
गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट
पिला साक़ी मय-ए-गुल-रंग फिर काली घटा आई
रिंदों को वाज़ पंद न कर फ़स्ल-ए-गुल में शैख़
दाग़-ए-दिल हैं ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार अब के बरस
लिख कर मुक़त्तआ'त में दीं उन को अर्ज़ियाँ
तालिब-ए-बोसा हूँ मैं क़ासिद वो हैं ख़्वाहान-ए-जान
थोड़ी थोड़ी राह में पी लेंगे गर कम है तो क्या
अक़्ल पर पत्थर पड़े उल्फ़त में दीवाना हुआ
असल साबित है वही शरअ' का इक पर्दा है
बुतान-ए-सर्व-क़ामत की मोहब्बत में न फल पाया