रिंदों को वाज़ पंद न कर फ़स्ल-ए-गुल में शैख़
ऐसा न हो शराब उड़े ख़ानक़ाह में
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किसी सूरत से हुई कम न हमारी तशवीश
शम्अ का शाना-ए-इक़बाल है तौफ़ीक़-ए-करम
किसी की जुब्बा-साई से कभी घिसता नहीं पत्थर
मेहर-ओ-उल्फ़त से मआल-ए-तहज़ीब
ज़बाँ पर तिरा नाम जब आ गया
फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे
जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा
उस से क्या छुप सके बनाई बात
शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था
क़त्अ होता रहे इस तरह बयान-ए-वाइज़
जब कि वहदत है बाइस-ए-कसरत
तेज़ी-ए-बादा कुजा तल्ख़ी-ए-गुफ़्तार कुजा