ज़बाँ पर तिरा नाम जब आ गया
तो गिरते को देखा सँभलते हुए
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(800) Peoples Rate This
मय-कदे को जा के देख आऊँ ये हसरत दिल में है
लब-ए-जाँ-बख़्श तक जा कर रहे महरूम बोसा से
शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है
बरहमन शैख़ को कर दे निगाह-ए-नाज़ उस बुत की
तेरा कूचा है वो ऐ बुत कि हज़ारों ज़ाहिद
क्या हुआ वीराँ किया गर मोहतसिब ने मय-कदा
सब में हूँ फिर किसी से सरोकार भी नहीं
हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है
दिल लिया है तो ख़ुदा के लिए कह दो साहब
मोहतसिब तू ने किया गर जाम-ए-सहबा पाश पाश
तालिब-ए-बोसा हूँ मैं क़ासिद वो हैं ख़्वाहान-ए-जान
नासेह ये वा'ज़-ओ-पंद है बेकार जाएगा