नासेह ये वा'ज़-ओ-पंद है बेकार जाएगा
हम से भी बादा-कश हैं कहीं पारसा हुए
Mohsin Naqvi
Gulzar
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Faiz Ahmad Faiz
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Allama Iqbal
Javed Akhtar
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Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
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करो बातें हटाओ आइना बस बन चुके गेसू
है निगहबाँ रुख़ का ख़ाल-रू-ए-दोस्त
ये साबित है कि मुतलक़ का तअय्युन हो नहीं सकता
फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है
है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है
जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले
तीरा-बख़्ती की बला से यूँ निकलना चाहिए
दिल लिया है तो ख़ुदा के लिए कह दो साहब
क्या हुआ वीराँ किया गर मोहतसिब ने मय-कदा
क़दमों पे डर के रख दिया सर ताकि उठ न जाएँ
किसी सूरत से हुई कम न हमारी तशवीश
रिंदों को वाज़ पंद न कर फ़स्ल-ए-गुल में शैख़