अजनबी Poetry (page 13)

हाल खुलता नहीं जबीनों से

अदा जाफ़री

तन्हा उदास शब के सिवा कोई भी न था

अबरार आज़मी

पस-मंज़र की आवाज़

अबरार अहमद

इक अजनबी की तरह है ये ज़िंदगी मिरे साथ

आबिद मलिक

मिरा बदन है मगर मुझ से अजनबी है अभी

आबिद आलमी

वो अजनबी तिरी बाँहों में जो रहा शब भर

अब्दुर्रहीम नश्तर

वो शख़्स जिस ने ख़ुद अपना लहू पिया होगा

अब्दुर्रहीम नश्तर

नए हैं वस्ल के मौसम मोहब्बतें भी नई

अब्दुल वहाब सुख़न

बहुत से लोगों को ग़म ने जिला के मार दिया

अब्दुल हमीद अदम

तेरी आँखों से अपनी तरफ़ देखना भी अकारत गया

अब्बास ताबिश

वही दर्द है वही बेबसी तिरे गाँव में मिरे शहर में

अब्बास दाना

ज़मीन उन के लिए फूल खिलाती है

अब्बास अतहर

ख़मोश बैठे हो क्यूँ साज़-ए-बे-सदा की तरह

अातिश बहावलपुरी

मानूस हो गए हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से हम

आसी रामनगरी

ठिकाने यूँ तो हज़ारों तिरे जहान में थे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

हमारे बारे में क्या क्या न कुछ कहा होगा

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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