अखबार Poetry (page 3)

दोस्तों में वाक़ई ये बहस भी अक्सर हुई

इक़बाल उमर

ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते

इन्दिरा वर्मा

आसमाँ मिल न सका धरती पे आया न गया

इमरान हुसैन आज़ाद

मैं सच कहूँ पस-ए-दीवार झूट बोलते हैं

इमरान आमी

इफ़्शा हुए असरार-ए-जुनूँ जामा-दरी से

इमदाद अली बहर

ऐसे पुर-नूर-ओ-ज़िया यार के रुख़्सारे हैं

इमदाद अली बहर

इंकार ही कर दीजिए इक़रार नहीं तो

इफ़्तिख़ार राग़िब

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच

इब्न-ए-इंशा

सब मुतमइन थे सुब्ह का अख़बार देख कर

हुसैन ताज रिज़वी

न वो इक़रार करता है न वो इंकार करता है

हसन रिज़वी

अख़बार

गुलज़ार

पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं

गुलज़ार

जब चले जाएँगे हम लौट के सावन की तरह

गोपालदास नीरज

ज़मीं की हद अगर कोई नहीं है

गाैस मथरावी

अभी निकलो न घर से तंग आ के

फ़िराक़ जलालपुरी

आप की तस्वीर थी अख़बार में

फ़ारूक़ नाज़की

तिरा जल्वा शाम-ओ-सहर देखते हैं

फ़रहत कानपुरी

रास्ता दे ऐ हुजूम-ए-शहर घर जाएँगे हम

फ़रहत एहसास

जिस्म के पार वो दिया सा है

फ़रहत एहसास

बिकेगी उस की ही दस्तार तय है

डॉक्टर आज़म

चालीस चोर

दिलावर फ़िगार

अहमक़ों की कांफ्रेंस

दिलावर फ़िगार

अजब अख़बार लिक्खा जा रहा है

दिलावर फ़िगार

डाइरी

दीप्ति मिश्रा

मुट्ठी में दो-चार नहीं

दीपक शर्मा दीप

तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ

दाग़ देहलवी

रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं

भारत भूषण पन्त

लाख टकराते फिरें हम सर दर-ओ-दीवार से

भारत भूषण पन्त

टूटे पड़ते हैं ये हैं किस के ख़रीदार तमाम

बेख़ुद देहलवी

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