आप की तस्वीर थी अख़बार में
क्या सबब है आप घर जाते नहीं
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जुनूँ-आसार मौसम का पता कोई नहीं देगा
मेरे चेहरे की स्याही का पता दे कोई
बचपन
अजीब रंग सा चेहरों पे बे-कसी का है
जूँही बाम-ओ-दर जागे
बहकी हुई रूहों को तसल्ली दे कर
मातम-ए-नीम-ए-शब
मशवरा देने की कोशिश तो करो
इतनी ख़राब सूरत-ए-हालात भी नहीं
गहरी नीली शाम का मंज़र लिखना है
सुनहरी दरवाज़े के बाहर
रंग ख़ाके में नया भर दूँगा मैं