अब फ़क़ीरी में कोई बात नहीं
हश्मत-ओ-जाह-ओ-कर्र-ओ-फ़र दे दे
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(733) Peoples Rate This
काँच के अल्फ़ाज़ काग़ज़ पर न रख
यूँही कर लेते हैं औक़ात बसर अपना क्या
ऐ मरकज़-ए-ख़याल बिखरने लगा हूँ मैं
हिसार-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास में है बुतान-ए-वहम-ओ-गुमाँ की बस्ती
बहकी हुई रूहों को तसल्ली दे कर
सितारे बोती रहीं नींद से तही आँखें
जूँही बाम-ओ-दर जागे
मशवरा देने की कोशिश तो करो
में इक गाँव का शाएर हूँ
तेज़ाब, आकार ख़ुश्बू का
और मैं चुप रहा
भटक न जाता अगर ज़ात के बयाबाँ में