भटक न जाता अगर ज़ात के बयाबाँ में
तो मेरा नक़्श-ए-क़दम मेरा राहबर होता
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बस्ती से दूर जा के कोई रो रहा है क्यूँ
अजीब रंग सा चेहरों पे बे-कसी का है
मेरे चेहरे की स्याही का पता दे कोई
ए मरकज़-ए-ख़याल बिखरने लगा हूँ में
जूँही बाम-ओ-दर जागे
वही में हूँ वही ख़ाली मकाँ है
दर्द की रात गुज़रती है मगर आहिस्ता
सितारे बोती रहीं नींद से तही आँखें
तू ख़ुदा है तो बजा मुझ को डराता क्यूँ है
आप की तस्वीर थी अख़बार में
जुनूँ-आसार मौसम का पता कोई नहीं देगा