अन्ना Poetry (page 1)

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ख़ुद-सताई से न हम बाज़ अना से आए

आज़ाद हुसैन आज़ाद

कोई रुत्बा तो कोई नाम-नसब पूछता है

कोई चराग़ न जुगनू सफ़र में रक्खा गया

वफ़ा नक़वी

राहत-ए-नज़र भी है वो अज़ाब-ए-जाँ भी है

महमूद शाम

नद्दी ये जैसे मौज में दरिया से जा मिले

जानाँ मलिक

बटे रहोगे तो अपना यूँही बहेगा लहू

हबीब जालिब

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

रहरव-ए-राह-ए-ख़राबात-ए-चमन

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

इक दर्द का सहरा है सिमटता ही नहीं है

ज़िया ज़मीर

दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ

ज़िया ज़मीर

उस के क़ुर्ब के सारे ही आसार लगे

ज़ेब ग़ौरी

रंग-ए-ग़ज़ल में दिल का लहू भी शामिल हो

ज़ेब ग़ौरी

हाइल दिलों की राह में कुछ तो अना भी है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

चुप के सहरा में फ़क़त एक सदा कौन हूँ मैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

नूर ये किस का बसा है मुझ में

ज़की तारिक़

कुछ यक़ीं रहने दिया कुछ वाहिमा रहने दिया

ज़ाहिद अाफ़ाक

तमाम रंग जहाँ इल्तिजा के रक्खे थे

ज़फ़र मुरादाबादी

ख़ुश-गुमाँ हर आसरा बे-आसरा साबित हुआ

ज़फ़र मुरादाबादी

कभी दुआ तो कभी बद-दुआ से लड़ते हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

बे-क़नाअत क़ाफ़िले हिर्स-ओ-हवा ओढ़े हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

भले ही आँख मिरी सारी रात जागेगी

ज़फर इमाम

इतना करम कि अज़्म रहे हौसला रहे

यूसुफ़ तक़ी

ढूँढता हक़ को दर-ब-दर है तू

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

आप को भूल के मैं याद-ए-ख़ुदा करता हूँ

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

आई ऐ गुल-एज़ार क्या कहना

वज़ीर अली सबा लखनवी

डर मौत का न ख़ौफ़ किसी देवता का था

वसीम मीनाई

तमाम उम्र बड़े सख़्त इम्तिहान में था

वसीम बरेलवी

मेरा किया था मैं टूटा कि बिखरा रहा

वसीम बरेलवी

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