अन्ना Poetry (page 14)

जिस्म के मर्तबान में क्या है

अब्दुस्समद ’तपिश’

देख कर मेरी अना किस दर्जा हैरानी में है

अब्दुस्समद ’तपिश’

मैं तुझ को जागती आँखों से छू सकूँ न कभी

अब्दुल्लाह कमाल

अपने होने का इक इक पल तजरबा करते रहे

अब्दुल्लाह कमाल

अभी गुनाह का मौसम है आ शबाब में आ

अब्दुल्लाह कमाल

खुली जब आँख तो देखा कि था बाज़ार का हल्क़ा

अब्दुल मन्नान तरज़ी

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-दिलबरी सिमट आ निगाह-ए-मजाज़ में

अब्दुल अलीम आसि

ज़ियारत

अब्दुल अहद साज़

नक़्श सारे ख़ाक के हैं सब हुनर मिट्टी का है

अब्बास ताबिश

उस की वफ़ा न मेरी वफ़ा का सवाल था

अब्बास दाना

सिलसिले सब रुक गए दिल हाथ से जाता रहा

आज़िम कोहली

आँखों को नक़्श-ए-पा तिरा दिल को ग़ुबार कर दिया

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

नजात

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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