आंख Poetry (page 28)

शायद गुलाब शायद कबूतर

रईस फ़रोग़

वस्ल की रुत हो कि फ़ुर्क़त की फ़ज़ा मुझ से है

राहुल झा

उड़ाते आए हैं आप अपने ख़्वाब-ज़ार की ख़ाक

रहमान हफ़ीज़

थोड़ी सी दूर तेरी सदा ले गई हमें

इरफ़ान अहमद

दोस्तों में वाक़ई ये बहस भी अक्सर हुई

इक़बाल उमर

ये इत्र बे-ज़ियाँ नहीं नसीम-ए-नौ-बहार की

इक़बाल सुहैल

वो मुसलसल चुप है तेरे सामने तन्हाई में

इक़बाल साजिद

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को

इक़बाल साजिद

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

इक़बाल साजिद

ग़ार से संग हटाया तो वो ख़ाली निकला

इक़बाल साजिद

इक तबीअत थी सो वो भी ला-उबाली हो गई

इक़बाल साजिद

गुल की ख़ुश्बू की तरह आँख के आँसू की तरह

इक़बाल माहिर

रवाँ हूँ मैं

इक़बाल कौसर

मैं दर पे तिरे दर-ब-दरी से निकल आया

इक़बाल कौसर

कभी आइने सा भी सोचना मुझे आ गया

इक़बाल कौसर

जो ज़ख़्म जम्अ किए आँख-भर सुनाता हूँ

इक़बाल कौसर

इक लौ थी मिरे ख़ून में तहलील तो ये थी

इक़बाल कौसर

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ

इक़बाल अज़ीम

ख़िज़ाँ का क़र्ज़ तो इक इक दरख़्त पर है यहाँ

इक़बाल अशहर कुरेशी

सिलसिला ख़त्म हुआ जलने जलाने वाला

इक़बाल अशहर

ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की

इक़बाल अशहर

दिल भी पत्थर सीना पत्थर आँख पे पट्टी रक्खी है

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

ज़िन्हार हिम्मत अपने से हरगिज़ न हारिए

इंशा अल्लाह ख़ान

यास-ओ-उमीद-ओ-शादी-ओ-ग़म ने धूम उठाई सीने में

इंशा अल्लाह ख़ान

तुम्हारे हाथों की उँगलियों की ये देखो पोरें ग़ुलाम तीसों

इंशा अल्लाह ख़ान

टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा

इंशा अल्लाह ख़ान

नींद मस्तों को कहाँ और किधर का तकिया

इंशा अल्लाह ख़ान

मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम

इंशा अल्लाह ख़ान

मिल गए पर हिजाब बाक़ी है

इंशा अल्लाह ख़ान

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