शेर Poetry (page 4)

कोह के सीने से आब-ए-आतशीं लाता कोई

हसन नईम

मिलेगी शैख़ को जन्नत, हमें दोज़ख़ अता होगा

हरी चंद अख़्तर

मक़्सद-ए-हयात

हाजी लक़ लक़

ज़िंदे वही हैं जो कि हैं तुम पर मरे हुए

हैदर अली आतिश

ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए

हैदर अली आतिश

करना जो मोहब्बत का इक़रार समझ लेना

हफ़ीज़ जौनपुरी

न कर दिल-जूई ऐ सय्याद मेरी

हफ़ीज़ जालंधरी

चले थे हम कि सैर-ए-गुलशन-ए-ईजाद करते हैं

हफ़ीज़ जालंधरी

जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं

हफ़ीज़ बनारसी

जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं

हफ़ीज़ बनारसी

बे-महल है गुफ़्तुगू हैं बे-असर अशआर अभी

हबीब तनवीर

मुलाक़ात

हबीब जालिब

कॉफ़ी-हाउस

हबीब जालिब

यूँ वो ज़ुल्मत से रहा दस्त-ओ-गरेबाँ यारो

हबीब जालिब

अपने अशआर को रुस्वा सर-ए-बाज़ार करूँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

न सताइश की तमन्ना न सिले की परवा

ग़ालिब

गंजीना-ए-मअ'नी का तिलिस्म उस को समझिए

ग़ालिब

न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही

ग़ालिब

जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे

ग़ालिब

बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआर का दफ़्तर खुला

ग़ालिब

ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया

फ़िराक़ गोरखपुरी

हैं ये जज़्बात मिरे दर्द भरे दिल के फ़िगार

फ़िगार उन्नावी

हदीस-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-शम्-ओ-परवाना नहीं कहते

फ़िगार उन्नावी

आँखों में न ज़ुल्फ़ों में न रुख़्सार में देखें

फ़ातिमा हसन

खुल कर आख़िर जहल का एलान होना चाहिए

फरीहा नक़वी

पैकर-ए-अक़्ल तिरे होश ठिकाने लग जाएँ

फ़रहत एहसास

जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ

फ़रहत एहसास

हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है

फ़रहत एहसास

झूटी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

लगा कि जैसे किसी काँपते हिरन को छुआ

फ़ैज़ ख़लीलाबादी

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