मुलाक़ात

जो हो न सकी बात वो चेहरों से अयाँ थी

हालात का मातम था मुलाक़ात कहाँ थी

उस ने न ठहरने दिया पहरों मिरे दिल को

जो तेरी निगाहों में शिकायत मिरी जाँ थी

घर में भी कहाँ चैन से सोए थे कभी हम

जो रात है ज़िंदाँ में वही रात वहाँ थी

यकसाँ हैं मिरी जान क़फ़स और नशेमन

इंसान की तौक़ीर यहाँ है न वहाँ थी

शाहों से जो कुछ रब्त न क़ाएम हुआ अपना

आदत का भी कुछ जब्र था कुछ अपनी ज़बाँ थी

सय्याद ने यूँही तो क़फ़स में नहीं डाला

मशहूर गुलिस्ताँ में बहुत मेरी फ़ुग़ाँ थी

तू एक हक़ीक़त है मिरी जाँ मिरी हमदम

जो थी मिरी ग़ज़लों में वो इक वहम-ओ-गुमाँ थी

महसूस किया मैं ने तिरे ग़म से ग़म-ए-दहर

वर्ना मिरे अशआर में ये बात कहाँ थी

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