अभी ऐ दोस्त ज़ौक़-ए-शाएरी है वज्ह रुस्वाई
तिरी बस्ती में हम पर और भी इल्ज़ाम आएँगे
अगर अब भी हमारा साथ तू ऐ दिल नहीं देगा
तो हम इस शहर में तुझ को अकेला छोड़ जाएँगे
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Rahat Indori
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लायल-पूर
घर के ज़िंदाँ से उसे फ़ुर्सत मिले तो आए भी
ग़म के साँचे में ढल सको तो चलो
अहद-ए-सज़ा
ज़र्रे ही सही कोह से टकरा तो गए हम
क्या क्या लोग गुज़र जाते हैं रंग-बिरंगी कारों में
मेरी बच्ची
उन के आने के बाद भी 'जालिब'
इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
ऐ जहाँ देख ले!
तेरे होने से
नीलो