नीलो

तू कि ना-वाक़िफ़-ए-आदाब-ए-शहंशाही थी

रक़्स ज़ंजीर पहन कर भी किया जाता है

तुझ को इंकार की जुरअत जो हुई तो क्यूँकर

साया-ए-शाह में इस तरह जिया जाता है

अहल-ए-सर्वत की ये तज्वीज़ है सरकश लड़की

तुझ को दरबार में कोड़ों से नचाया जाए

नाचते नाचते हो जाए जो पायल ख़ामोश

फिर न ता-ज़ीस्त तुझे होश में लाया जाए

लोग इस मंज़र-ए-जांकाह को जब देखेंगे

और बढ़ जाएगा कुछ सतवत-ए-शाही का जलाल

तेरे अंजाम से हर शख़्स को इबरत होगी

सर उठाने का रेआया को न आएगा ख़याल

तब्-ए-शाहाना पे जो लोग गिराँ होते हैं

हाँ उन्हें ज़हर भरा जाम दिया जाता है

तू कि ना-वाक़िफ़-ए-आदाब-ए-शहंशाही थी

रक़्स ज़ंजीर पहन कर भी किया जाता है

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Nilo In Hindi By Famous Poet Habib Jalib. Nilo is written by Habib Jalib. Complete Poem Nilo in Hindi by Habib Jalib. Download free Nilo Poem for Youth in PDF. Nilo is a Poem on Inspiration for young students. Share Nilo with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.