मुद्दतें हो गईं ख़ता करते
शर्म आती है अब दुआ करते
चाँद तारे भी उन का ऐ 'जालिब'
थरथराते हैं सामना करते
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Wasi Shah
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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मेरी बच्ची
कॉफ़ी-हाउस
अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं
चूर था ज़ख़्मों से दिल ज़ख़्मी जिगर भी हो गया
मीरा-जी
उस सितमगर की हक़ीक़त हम पे ज़ाहिर हो गई
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या
लाख कहते रहें ज़ुल्मत को न ज़ुल्मत लिखना
बटे रहोगे तो अपना यूँही बहेगा लहू
डूब जाएगा आज भी ख़ुर्शीद
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था