बदन Poetry (page 2)

था हर्फ़-ए-शौक़ सैद हुआ कौन ले गया

ज़ुबैर रिज़वी

पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है

ज़ुबैर रिज़वी

ख़ुर्शीद की बेटी कि जो धूपों में पली है

ज़ुबैर रिज़वी

अपने घर के दर-ओ-दीवार को ऊँचा न करो

ज़ुबैर रिज़वी

मेरा सारा बदन राख हो भी चुका मैं ने दिल को बचाया है तेरे लिए

ज़ुबैर फ़ारूक़

सुकूत से भी सुख़न को निकाल लाता हुआ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

जिस तरह प्यासा कोई आब-ए-रवाँ तक पहुँचे

ज़िया ज़मीर

इक दर्द का सहरा है सिमटता ही नहीं है

ज़िया ज़मीर

हाबील

ज़िया जालंधरी

रास्ते

ज़ेहरा निगाह

एक पुरानी कहानी

ज़ेहरा निगाह

बुलावा

ज़ेहरा निगाह

जुज़्व

ज़ेहरा अलवी

फूलों की अंजुमन में बहुत देर तक रहा

ज़ीशान साहिल

ग्लैडिएटर

ज़ीशान हैदर

हैं काम-काज इतने बदन से लिपट गए

ज़ीशान साजिद

मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया

ज़ेब ग़ौरी

लहू में तैरता फिरता है मेरा ख़स्ता बदन

ज़ेब ग़ौरी

घसीटते हुए ख़ुद को फिरोगे 'ज़ेब' कहाँ

ज़ेब ग़ौरी

मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया

ज़ेब ग़ौरी

मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल-ए-ख़ाम है क्या

ज़ेब ग़ौरी

लगाऊँ हाथ तुझे ये ख़याल-ए-ख़ाम है क्या

ज़ेब ग़ौरी

गर्म लहू का सोना भी है सरसों की उजयाली में

ज़ेब ग़ौरी

एक किरन बस रौशनियों में शरीक नहीं होती

ज़ेब ग़ौरी

भड़कती आग है शो'लों में हाथ डाले कौन

ज़ेब ग़ौरी

बस एक पर्दा-ए-इग़माज़ था कफ़न उस का

ज़ेब ग़ौरी

लबों की जुम्बिश नवा-ए-बुलबुल है शोख़ लहजा तिरा क़यामत

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

अजनबी ख़ुशबू की आहट से महक उट्ठा बदन

ज़की तारिक़

मेरे ख़्वाबों का कभी जब आसमाँ रौशन हुआ

ज़की तारिक़

ख़ाक हम मुँह पे मले आए हैं

ज़काउद्दीन शायाँ

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