बदन Poetry (page 3)

किस क़यामत की घुटन तारी है

ज़करिय़ा शाज़

किस क़यामत की घुटन तारी है

ज़करिय़ा शाज़

खोया हुआ था हासिल होने वाला हूँ

ज़करिय़ा शाज़

हक़ीक़तों को फ़साना नहीं बनाती मैं

ज़हरा क़रार

हक़ीक़तों को फ़साना नहीं बनाती मैं

ज़हरा क़रार

चाँद की बेबसी को समझूँगी

ज़हरा क़रार

चाँद की बेबसी को समझूँगी

ज़हरा क़रार

आजिज़ी को चलन किए हुए हैं

ज़ाहिद शम्सी

मेरा ग़ुस्सा कहाँ है?

ज़ाहिद इमरोज़

काएनाती गर्द में बरसात की एक शाम

ज़ाहिद इमरोज़

क़सम उस बदन की

ज़ाहिद हसन

उठाना ख़ुद ही पड़ता है थका टूटा बदन 'फ़ख़री'

ज़ाहिद फख़री

मोहब्बत के सफ़र में कोई भी रस्ता नहीं देता

ज़ाहिद फख़री

असीर-ए-ज़ात-ए-रौशनी

ज़हीर सिद्दीक़ी

यूँ ही हम दर्द अपना खो रहे हैं

ज़हीर रहमती

तिरी चश्म-ए-तरब को देखना पड़ता है पुर-नम भी

ज़हीर काश्मीरी

हैं बज़्म-ए-गुल में बपा नौहा-ख़्वानियाँ क्या क्या

ज़हीर काश्मीरी

आरिज़-ए-शम्अ' पे नींद आ गई परवानों को

ज़हीर काश्मीरी

उतरे तो कई बार सहीफ़े मिरे घर में

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

गेसू से अंबरी है सबा और सबा से हम

ज़हीर देहलवी

कभी कभी कोई चेहरा ये काम करता है

ज़फ़र सहबाई

ख़ुश-गुमाँ हर आसरा बे-आसरा साबित हुआ

ज़फ़र मुरादाबादी

ज़िंदगी को शो'बदा समझा था मैं

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

पाई हमेशा रेत भँवर काटने के बा'द

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

जिस रोज़ से अपना मुझे इदराक हुआ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

ये हाल है तो बदन को बचाइए कब तक

ज़फ़र इक़बाल

हवा के साथ जो इक बोसा भेजता हूँ कभी

ज़फ़र इक़बाल

यक़ीं की ख़ाक उड़ाते गुमाँ बनाते हैं

ज़फ़र इक़बाल

वही मिरे ख़स-ओ-ख़ाशाक से निकलता है

ज़फ़र इक़बाल

पता चला कोई गिर्दाब से गुज़रते हुए

ज़फ़र इक़बाल

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