बदन Poetry (page 5)

थकन

वज़ीर आग़ा

निरवान

वज़ीर आग़ा

बंधन

वज़ीर आग़ा

वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगे

वज़ीर आग़ा

उस की आवाज़ में थे सारे ख़द-ओ-ख़ाल उस के

वज़ीर आग़ा

तुम्हें ख़बर भी न मिली और हम शिकस्ता-हाल

वज़ीर आग़ा

थी नींद मेरी मगर उस में ख़्वाब उस का था

वज़ीर आग़ा

सहर ने आ कर मुझे सुलाया तो मैं ने जाना

वज़ीर आग़ा

लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो

वज़ीर आग़ा

दिन ढल चुका था और परिंदा सफ़र में था

वज़ीर आग़ा

कोई अपने वास्ते महशर उठा कर ले गया

वलीउल्लाह वली

जब सनम कूँ ख़याल-ए-बाग़ हुआ

वली मोहम्मद वली

हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

कमर धोका दहन उक़्दा ग़ज़ाल आँखें परी चेहरा

वाजिद अली शाह अख़्तर

लजयाई से नाज़ुक है ऐ जान बदन तेरा

वाजिद अली शाह अख़्तर

ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तवाना ख़ूबसूरत जिस्म

वहीद अख़्तर

आगही की दुआ

वहीद अख़्तर

सहराओं में दरिया भी सफ़र भूल गया है

वहीद अख़्तर

शाफ़्फ़ाफ़ियाँ(2)

वहीद अहमद

पचासी साल नीचे गिर गए

वहीद अहमद

थकावटों से बैठ के सफ़र उतारिए कहीं

वहाब दानिश

ख़ाक के पुतलों में पत्थर के बदन को वास्ता

वहाब दानिश

हर रौशनी की बूँद पे लब रख चुकी है रात

वहाब दानिश

जुनूँ के बाब में अब के ये राएगानी हो

विपुल कुमार

जल्द आएँ जिन्हें सीने से लगाना है मुझे

विपुल कुमार

फ़र्ज़-ए-सुपुर्दगी में तक़ाज़े नहीं हुए

विपुल कुमार

या तिरी आरज़ू सा हो जाऊँ

विनीत आश्ना

और सब कुछ बहाल रक्खा है

विनीत आश्ना

फ़िक्र का कारोबार था मुझ में

विकास शर्मा राज़

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