ये हाल है तो बदन को बचाइए कब तक
सदा में धूप बहुत है लहू में लू है बहुत
Rahat Indori
Wasi Shah
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Gulzar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1358) Peoples Rate This
कुफ़्र से ये जो मुनव्वर मिरी पेशानी है
मौत के साथ हुई है मिरी शादी सो 'ज़फ़र'
जहाँ निगार-ए-सहर पैरहन उतारती है
यूँ तो किस चीज़ की कमी है
किस ताज़ा मारके पे गया आज फिर 'ज़फ़र'
खुल के रो भी सकूँ और हँस भी सकूँ जी भर के
साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ थी पानी की तरह निय्यत-ए-दिल
साल-हा-साल से ख़ामोश थे गहरे पानी
ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए
मैं किसी और ज़माने के लिए हूँ शायद
तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी
एक ही बार नहीं है वो दोबारा कम है