मैं किसी और ज़माने के लिए हूँ शायद
इस ज़माने में है मुश्किल मिरा ज़ाहिर होना
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इक लहर है कि मुझ में उछलने को है 'ज़फ़र'
कुफ़्र से ये जो मुनव्वर मिरी पेशानी है
यहीं तक लाई है ये ज़िंदगी भर की मसाफ़त
अपने सोए हुए सूरज की ख़बर ले जा कर
ब-ज़ाहिर सेहत अच्छी है जो बीमारी ज़ियादा है
पतंग उड़ाने से क्या मनअ कर सके ज़ाहिद
आज कल उस की तरह हम भी हैं ख़ाली ख़ाली
मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो 'ज़फ़र'
बाज़ार-ए-बोसा तेज़ से है तेज़-तर 'ज़फ़र'
पता चला कोई गिर्दाब से गुज़रते हुए
जो यहाँ ख़ुद ही लगा रक्खी है चारों जानिब
सिमटने की हवस क्या थी बिखरना किस लिए है