बहाना Poetry (page 2)
शोर थमने के बाद
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
खाने को तो ज़हर भी खाया जा सकता है
शकील जमाली
चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए
शकील आज़मी
ला-ज़वाल होने का
शहरयार
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
शहरयार
हवा का ज़ोर ही काफ़ी बहाना होता है
शहरयार
मौजा-ए-ख़ून-ए-परेशान कहाँ जाता है
शाहीन अब्बास
मौजा-ए-ख़ून-ए-परेशान कहाँ जाता है
शाहीन अब्बास
क्यूँ हो बहाना-जू न क़ज़ा सर से पाँव तक
शाद अज़ीमाबादी
किसे ख़बर थी कि इस को भी टूट जाना था
सरफ़राज़ नवाज़
वहशत दीवारों में चुनवा रक्खी है
साक़ी फ़ारुक़ी
शाएरी झूट सही इश्क़ फ़साना ही सही
समीना राजा
शाएरी झूट सही इश्क़ फ़साना ही सही
समीना राजा
वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ
सलीम कौसर
मिलना न मिलना एक बहाना है और बस
सलीम कौसर
वो बे-ख़ुदी थी मोहब्बत की बे-रुख़ी तो न थी
सलीम अहमद
मुझ से कहता है कि साए की तरह साथ हैं हम
सलीम अहमद
'सलीम' दिल को मयस्सर सकूँ ज़रा न हुआ
सलीम अहमद
जा के फिर लौट जो आए वो ज़माना कैसा
सलीम अहमद
उस सादा-दिल से कुछ मुझे 'बाक़र' गिला न था
सज्जाद बाक़र रिज़वी
सर से जुनून-ए-इश्क़ का सौदा निकालिए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
हम को पहले भी न मिलने की शिकायत कब थी
साजिद अमजद
वीडियो गेम
साइमा असमा
मता-ए-ग़ैर
साहिर लुधियानवी
तुम से मिलने का बहाना तक नहीं
सईद क़ैस
शाम के आसार गीले हैं बहुत
सईद क़ैस
वरक़ वरक़ से नया इक जवाब माँगूँ मैं
सईद नक़वी
इक-आध बार तो जाँ वारनी ही पड़ती है
साबिर ज़फ़र
निगाह करने में लगता है क्या ज़माना कोई
साबिर ज़फ़र
मुझे ग़रज़ है सितारे न माहताब के साथ
रहमान फ़ारिस
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