इक-आध बार तो जाँ वारनी ही पड़ती है
मोहब्बतें हों तो बनता नहीं बहाना कोई
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मैं एक हाथ तिरी मौत से मिला आया
उम्र भर लिखते रहे फिर भी वरक़ सादा रहा
नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
मिसाल-ए-संग पड़ा कब तक इंतिज़ार करूँ
वो नींद अधूरी थी क्या ख़्वाब ना-तमाम था क्या
अपनी यादें उस से वापस माँग कर
इलाज-ए-अहल-ए-सितम चाहिए अभी से 'ज़फ़र'
डूबता हूँ जो हटाता हूँ नज़र पानी से
पड़ा न फ़र्क़ कोई पैरहन बदल के भी
मैं ऐसे जमघटे में खो गया हूँ
पहले भी ख़ुदा को मानता था
वो नींद अधूरी थी क्या ख़्वाब-ए-ना-तमाम था क्या