उम्र भर लिखते रहे फिर भी वरक़ सादा रहा
जाने क्या लफ़्ज़ थे जो हम से न तहरीर हुए
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(841) Peoples Rate This
बदन ने छोड़ दिया रूह ने रिहा न किया
पहले भी ख़ुदा को मानता था
शाम से पहले तिरी शाम न होने दूँगा
कहती है ये शाम की नर्म हवा फिर महकेगी इस घर की फ़ज़ा
अब कहीं और कहाँ ख़ाक-बसर हों तिरे बंदे जा कर
कुछ बे-ठिकाना करती रहीं हिजरतें मुदाम
नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
मिसाल-ए-संग पड़ा कब तक इंतिज़ार करूँ
ये सोच के राख हो गया हूँ
इक-आध बार तो जाँ वारनी ही पड़ती है
न इंतिज़ार करो इन का ऐ अज़ा-दारो
छाने होंगे सहरा जिस ने वो ही जान सका होगा