उस से बिछड़ के एक उसी का हाल नहीं मैं जान सका
वैसे ख़बर तो हर पल मुझ तक दुनिया भर की आती रही
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(547) Peoples Rate This
बना हुआ है मिरा शहर क़त्ल-गाह कोई
मिलूँ तो कैसे मिलूँ बे-तलब किसी से मैं
वो लोग आज ख़ुद इक दास्ताँ का हिस्सा हैं
मैं भी हूँ इक मकान की हद में
वो नींद अधूरी थी क्या ख़्वाब-ए-ना-तमाम था क्या
कितनी बे-सूद जुदाई है कि दुख भी न मिला
नामा-बर कोई नहीं है तो किसी लहर के हाथ
न इंतिज़ार करो इन का ऐ अज़ा-दारो
वो क्यूँ न रूठता मैं ने भी तो ख़ता की थी
मैं एक हाथ तिरी मौत से मिला आया
यहाँ जो पेड़ थे अपनी जड़ों को छोड़ चुके
ख़ुमार-ए-शब में जो इक दूसरे पे गिरते हैं