वो एक बार भी मुझ से नज़र मिलाए अगर
तो मैं उसे भी कोई मेहरबाँ शुमार करूँ
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नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
मैं सोचता हूँ मुझे इंतिज़ार किस का है
निगाह करने में लगता है क्या ज़माना कोई
'ज़फ़र' वहाँ कि जहाँ हो कोई भी हद क़ाएम
सब सितम याद हैं सारी हमदर्दियाँ याद हैं
शाम से पहले तिरी शाम न होने दूँगा
किसी ख़याल की सरशारी में जारी-ओ-सारी यारी में
ये सोच के राख हो गया हूँ
कोई तो तर्क-ए-मरासिम पे वास्ता रह जाए
मैं भी हूँ इक मकान की हद में
मैं एक हाथ तिरी मौत से मिला आया