मिलूँ तो कैसे मिलूँ बे-तलब किसी से मैं
जिसे मिलूँ वो कहे मुझ से कोई काम था क्या
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उम्र भर लिखते रहे फिर भी वरक़ सादा रहा
मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया
जिधर हो ज़िंदगी मुश्किल उधर नहीं आते
इलाज-ए-अहल-ए-सितम चाहिए अभी से 'ज़फ़र'
नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है
न इंतिज़ार करो इन का ऐ अज़ा-दारो
पड़ा न फ़र्क़ कोई पैरहन बदल के भी
सुब्ह की सैर की करता हूँ तमन्ना शब भर
काम इतनी ही फ़क़त राहगुज़र आएगी
जीने का दरस सब से जुदा चाहिए मुझे
नज़र आते नहीं हैं बहर में हम