मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया
जिस से जो व'अदा किया पूरा किया
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नामा-बर कोई नहीं है तो किसी लहर के हाथ
मैं सोचता हूँ मुझे इंतिज़ार किस का है
अजब इक बे-यक़ीनी की फ़ज़ा है
शाम से पहले तिरी शाम न होने दूँगा
छाने होंगे सहरा जिस ने वो ही जान सका होगा
किसी ख़याल की सरशारी में जारी-ओ-सारी यारी में
ख़िज़ाँ की रुत है जनम-दिन है और धुआँ और फूल
दिन को मिस्मार हुए रात को तामीर हुए
वो लोग आज ख़ुद इक दास्ताँ का हिस्सा हैं
जिधर हो ज़िंदगी मुश्किल उधर नहीं आते
मैं एक हाथ तिरी मौत से मिला आया