नामा-बर कोई नहीं है तो किसी लहर के हाथ
भेज साहिल की तरफ़ अपनी ख़बर पानी से
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ख़ुमार-ए-शब में जो इक दूसरे पे गिरते हैं
न इंतिज़ार करो इन का ऐ अज़ा-दारो
उस से बिछड़ के एक उसी का हाल नहीं मैं जान सका
शाम से पहले तिरी शाम न होने दूँगा
वो क्यूँ न रूठता मैं ने भी तो ख़ता की थी
सर-ए-शाम लुट चुका हूँ सर-ए-आम लुट चुका हूँ
'ज़फ़र' है बेहतरी इस में कि मैं ख़मोश रहूँ
कहती है ये शाम की नर्म हवा फिर महकेगी इस घर की फ़ज़ा
मैं भी हूँ इक मकान की हद में
वो लोग आज ख़ुद इक दास्ताँ का हिस्सा हैं
यहाँ है धूप वहाँ साए हैं चले जाओ