सर-ए-शाम लुट चुका हूँ सर-ए-आम लुट चुका हूँ
कि डकैत बन चुके हैं कई शहर के सिपाही
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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कुछ बे-ठिकाना करती रहीं हिजरतें मुदाम
बना हुआ है मिरा शहर क़त्ल-गाह कोई
मिलूँ तो कैसे मिलूँ बे-तलब किसी से मैं
अपनी यादें उस से वापस माँग कर
महसूस लम्स जिस का सर-ए-रह-गुज़र किया
किसी ख़याल की सरशारी में जारी-ओ-सारी यारी में
हर दर्जे पे इश्क़ कर के देखा
यहाँ है धूप वहाँ साए हैं चले जाओ
नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
पड़ा न फ़र्क़ कोई पैरहन बदल के भी
उम्र भर लिखते रहे फिर भी वरक़ सादा रहा
इक-आध बार तो जाँ वारनी ही पड़ती है