'ज़फ़र' है बेहतरी इस में कि मैं ख़मोश रहूँ
खुले ज़बान तो इज़्ज़त किसी की क्या रह जाए
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Habib Jalib
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(500) Peoples Rate This
ये ज़ख़्म-ए-इश्क़ है कोशिश करो हरा ही रहे
डूबता हूँ जो हटाता हूँ नज़र पानी से
हम इतना चाहते थे एक दूसरे को 'ज़फ़र'
मोहब्बतें थीं कुछ ऐसी विसाल हो के रहा
बदन ने छोड़ दिया रूह ने रिहा न किया
बना हुआ है मिरा शहर क़त्ल-गाह कोई
गुज़ारता हूँ जो शब इश्क़-ए-बे-मआश के साथ
सुब्ह की सैर की करता हूँ तमन्ना शब भर
वो नींद अधूरी थी क्या ख़्वाब ना-तमाम था क्या
नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
निगाह करने में लगता है क्या ज़माना कोई
वो क्यूँ न रूठता मैं ने भी तो ख़ता की थी