बिहार Poetry (page 3)

न कोई ज़ख़्म लगा है न कोई दाग़ पड़ा है

ज़फ़र इक़बाल

मिला तो मंज़िल-ए-जाँ में उतारने न दिया

ज़फ़र इक़बाल

है कोई इख़्तियार दुनिया पर

ज़फ़र इक़बाल

है और बात बहुत मेरी बात से आगे

ज़फ़र इक़बाल

जारी है कब से मा'रका ये जिस्म-ओ-जाँ में सर्द सा

ज़फ़र गौरी

ये अहद क्या है कि सब पर गिराँ गुज़रता है

ज़फ़र अज्मी

तामीर-ए-ज़िंदगी को नुमायाँ किया गया

यूसुफ़ ज़फ़र

निगाह-ए-नाज़ का हासिल है ए'तिबार मुझे

यज़दानी जालंधरी

आशिक़ी के आश्कारे हो चुके

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

हम अपनी पुश्त पर खुली बहार ले के चल दिए

याक़ूब यावर

तूफ़ाँ की ज़द पे अपना सफ़ीना जब आ गया

याक़ूब उस्मानी

करम के इस दौर-ए-इम्तिहाँ से वो दौर-ए-मश्क़-ए-सितम ही अच्छा

याक़ूब उस्मानी

था उस का जैसा अमल वो ही यार मैं भी करूँ

याक़ूब आरिफ़

ये हम ने माना कि होगा विसाल-ए-यार नसीब

याक़ूब अली आसी

यार है आइना है शाना है

यगाना चंगेज़ी

वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला

यगाना चंगेज़ी

वहशत थी हम थे साया-ए-दीवार-ए-यार था

यगाना चंगेज़ी

साया अगर नसीब हो दीवार-ए-यार का

यगाना चंगेज़ी

वाइ'ज़ के मैं ज़रूर डराने से डर गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल-ए-पुर दाग़ बाग़ किस का है

वज़ीर अली सबा लखनवी

दाग़-ए-जुनूँ दिमाग़-ए-परेशाँ में रह गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

बंदा अब ना-सुबूर होता है

वज़ीर अली सबा लखनवी

आई ऐ गुल-एज़ार क्या कहना

वज़ीर अली सबा लखनवी

हम-सफ़र थम तो सही दिल को सँभालूँ तो चलूँ

वासिफ़ देहलवी

लहू लहू सा दिल-ए-दाग़-दार ले के चले

वाक़िफ़ राय बरेलवी

मज़ा था हम को जो बुलबुल से दू-बदू करते

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

लगता है इन दिनों के है महशर-ब-कफ़ हवा

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

एक इशारे में बदल जाता है मयख़ाने का नाम

वक़ार बिजनोरी

मुझे उस जुनूँ की है जुस्तुजू जो चमन को बख़्श दे रंग ओ बू

वामिक़ जौनपुरी

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