चीख Poetry (page 4)

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़ूँ में तर सब्र की चादर कहाँ ले जाओगे

इफ़्फ़त अब्बास

पिछले-पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

इब्न-ए-इंशा

तज़ाद

हिमायत अली शाएर

बगूला

हिमायत अली शाएर

मवाद कर के फ़राहम चमकती सड़कों से

हज़ीं लुधियानवी

रुस्तगारी

हामिदी काश्मीरी

चाँद कोहरे के जज़ीरों में भटकता होगा

हामिदी काश्मीरी

कोई दूद से बन जाता है वजूद

हामिद जीलानी

अर्ज़-ए-हुनर भी वज्ह-ए-शिकायात हो गई

हफ़ीज़ जालंधरी

एक दौर

गुलज़ार

ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ

ग़ज़नफ़र

सदा ब-सहरा

ग़ालिब अहमद

ज़मीन चीख़ रही है कि आसमान गिरा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

वो अगर अब भी कोई अहद निभाना चाहे

फरीहा नक़वी

ख़ुद-आगही

फ़रहत एहसास

अब तो कुछ भी याद नहीं

फ़हीम शनास काज़मी

कुछ मिरे शौक़ ने दर-पर्दा कहा हो जैसे

एहतिशाम हुसैन

दिल मिरा चीख़ रहा था शायद

डॉक्टर आज़म

रूह-ए-आवारा

दाऊद ग़ाज़ी

काश

दर्शिका वसानी

ज़र्रे का राज़ मेहर को समझाना चाहिए

बाक़र मेहदी

दीवानगी की राह में गुम-सुम हुआ न था!

बाक़र मेहदी

दीदा-ए-बे-रंग में ख़ूँ-रंग मंज़र रख दिए

बख़्श लाइलपूरी

अब अपनी चीख़ भी क्या अपनी बे ज़बानी क्या

अज़रा परवीन

मुराजअत

अज़ीज़ तमन्नाई

कावाक

अज़ीज़ क़ैसी

बाक़ीस्त शब-ए-फ़ित्ना

अज़ीज़ क़ैसी

कितना मुश्किल है

अतीक़ुल्लाह

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