चीख Poetry (page 3)

नक़्श जब ज़ख़्म बना ज़ख़्म भी नासूर हुआ

साइमा असमा

आँखों को ख़्वाब-नाक बनाना पड़ा मुझे

साइम जी

यादों की गूँज ज़ेहन से बाहर निकालिए

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

नूर-जहाँ के मज़ार पर

साहिर लुधियानवी

लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं

साहिर लुधियानवी

गुरेज़

साहिर लुधियानवी

आज कुआँ भी चीख़ उठा है

साहिल अहमद

आँख से आँसू टपका होगा

साहिल अहमद

गूँज मिरे गम्भीर ख़यालों की मुझ से टकराती है

सहबा अख़्तर

और कुछ चारा नहीं

सादिक़

दरवाज़े को पीट रहा हूँ पैहम चीख़ रहा हूँ

सादिक़

आवाज़ के पत्थर जो कभी घर में गिरे हैं

सबा इकराम

विदा-ए-यार का लम्हा ठहर गया मुझ में

रहमान फ़ारिस

क्यूँ तिरे साथ रहीं उम्र बसर होने तक

रहमान फ़ारिस

शौक़ से आए बुरा वक़्त अगर आता है

रसूल साक़ी

नाम हमारा दुनिया वाले लिखेंगे जी-दारों में

रशीद क़ैसरानी

मिरी जगह पे कोई और हो तो चीख़ उट्ठे

रम्ज़ी असीम

कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ

रम्ज़ी असीम

चलो कि जज़्बा-ए-इज़हार चीख़ में तो ढला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

कोई ख़्वाब ख़्वाब सा फ़ासला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मुझे पता था कि ये हादसा भी होना था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

बजाए हम-सफ़री इतना राब्ता है बहुत

राजेन्द्र मनचंदा बानी

अजीब तजरबा था भीड़ से गुज़रने का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

रईस अमरोहवी

मैं इक फेरी वाला

राही मासूम रज़ा

हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार

राही फ़िदाई

उस के नाम जिसे तारीकी निगल चुकी

इंजिला हमेश

काला

इमरान शमशाद

शत्तुल-अरब

इलियास बाबर आवान

कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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