आज कुआँ भी चीख़ उठा है
किसी ने पत्थर मारा होगा
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Habib Jalib
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Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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आईना मेरा बदल कर ले गया
रो पड़ीं आँखें बहुत 'साहिल' मिरी
बकरी ''में-में'' करती है
नौ-ब-नौ एक उमडता हुआ तूफ़ान था मैं
क्या परिंदे लौट कर आए नहीं
उन से ऐ दोस्त मिरा यूँ कोई रिश्ता तो न था
अब के वो ऐसे सफ़र पर क्या गए
मैं लबादा ओढ़ कर जाने लगा
बे-घरी
आँसू
असासा