बकरी ''में-में'' करती है
बकरा ज़ोर लगाता है
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आईना मेरा बदल कर ले गया
आज कुआँ भी चीख़ उठा है
कल तलक सहरा बसा था आँख में
शफ़्फ़ाफ़ रंग
नक़्श डरेगा जंगल में
किसी आईने का
क्या परिंदे लौट कर आए नहीं
ख़ुद को ख़ुद में तहलील करो
मैं लबादा ओढ़ कर जाने लगा
आँसू
रो पड़ीं आँखें बहुत 'साहिल' मिरी
मकड़ियों ने जब कहीं जाला तना