दामन Poetry (page 21)

ख़ुदा-परस्त हुए हम न बुत-परस्त हुए

इमदाद अली बहर

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

हमीं नाशाद नज़र आते हैं दिल-शाद हैं सब

इमदाद अली बहर

मिरा सीना है मशरिक़ आफ़्ताब-ए-दाग़-ए-हिज्राँ का

इमाम बख़्श नासिख़

मस्जिद-ए-अहमरीं

इलियास बाबर आवान

इश्क़ करता हूँ, तक़ाज़ा नहीं कर सकता मैं

इलियास बाबर आवान

चुराने को चुरा लाया मैं जल्वे रू-ए-रौशन से

इज्तिबा रिज़वी

चुराने को चुरा लाया मैं जल्वे रू-ए-रौशन से

इज्तिबा रिज़वी

वो कहते हैं कि 'राग़िब' तुम नहीं रखते ख़याल अपना

इफ़्तिख़ार राग़िब

वो कहते हैं कि आँखों में मिरी तस्वीर किस की है

इफ़्तिख़ार राग़िब

रुख़्सत-ए-यार का मज़मून ब-मुश्किल बाँधा

इफ़्तिख़ार मुग़ल

साएबान

इफ़्तेख़ार जालिब

शहर-आशोब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कुछ भी नहीं कहीं नहीं ख़्वाब के इख़्तियार में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रूह जिस्मों से बाहर भटकती रही

इफ़्फ़त ज़र्रीं

नज़र जो आया उस पे ए'तिबार कर लिया गया

इफ़्फ़त अब्बास

ज़िंदगी वादी ओ सहरा का सफ़र है क्यूँ है

इब्राहीम अश्क

लबों पर प्यास हो तो आस के बादल भरे रखियो

इब्राहीम अश्क

एक बार कहो तुम मेरी हो

इब्न-ए-इंशा

ऐ मिरे सोच-नगर की रानी

इब्न-ए-इंशा

सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

क्या ख़बर थी इंक़लाब आसमाँ हो जाएगा

हुसैन मीर काश्मीरी

वो दिल समो ले जो दामन में काएनात का कर्ब

हुरमतुल इकराम

अब तो दीवानों से यूँ बच के गुज़र जाती है

होश तिर्मिज़ी

वो तक़ाज़ा-ए-जुनूँ अब के बहारों में न था

होश तिर्मिज़ी

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